Saturday, 4 January 2014

गोरू दादा, गोरू दादा

गोरू दादा, गोरू दादा
बड़े सयाने बनते हैं,
अड्डूशाही नाक पे रहती,
सीना ताने चलते हैं,
बस की पों-पों
कार की पीं-पीं से इरिटेट ये होते हैं,
रात-रात भर लिखते रहते,
दिन-दिन भर ये सोते हैं,
इनको जो कोई अकड़ दिखाए,
अपनी गलती पर पछताए,
ये जब अपनी अकड़ पे आएं,
दुनिया सारी भाड़ में जाए,
नाज़ुक सी तबियत है इनकी,
सह न पाएं हवा सागर की,
एक सैर से काम तमाम,
हो जाता सरदर्द जुकाम,
डॉक्टर देख के ये घबराएं,
चेकअप के नाम से चक्कर आए,
टाइगर, पांडा इनके यार,
नंगू, गंजी से है प्यार,
ये अपना बड्डे नहीं मनाते,
दिन भर ऐसे ही इतराते,
दोस्त पकड़कर इनको लाते,
क्लैप बजाकर गाना गाते,
तब हलके से ये मुस्काकर अपनी कातिल अदा दिखाते,
तेरी इस मुस्कान पे यारा न्योछावर हर यारी है,
हैप्पी बड्डे बहुत गा चुके, अब पार्टी की बारी है...

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